विकार आत्मा नहीं दिमाग से उपजते हैं
अल्पविराम खुद के शुद्धिकरण की प्रक्रिया है
छतरपुर। व्यक्ति में जो भी विकार उत्पन्न होते हैं वह उसकी आत्मा से नहीं अपितु दिमाग की उपज होती है। अल्पविराम एक तरह से खुद के शुद्धिकरण की प्रक्रिया है। व्यक्ति बाहरी जकडऩ महसूस कर उसे तो दूर करना चाहता है परंतु अंदर की जकडऩ से नासमझ बना रहता है। यह विचार जिला पंचायत के ई-दक्षता केन्द्र में राज्य आनंद संस्थान से आये हिमाशूं भारत, जितेश श्रीवास्तव एवं आनंदम सहयोगी लखनलाल असाटी की उपस्थिति में संपन्न अल्पविराम कार्यक्रम में व्यक्त किए गये।
महिला कर्मचारियों ने शांत समय में अपनी आत्मा की आवाज को सुनने के अभ्यास के बाद कहा कि प्राय: वह जब महिलाओं के समूह में रह कर बात करती हैं तो बनावटीपन ज्यादा होता है। पर जब वह घर में अकेले उसी विषय पर विचार करती हैं तो उनके विचार सर्वथा भिन्न होते हैं। इन भिन्न-भिन्न विचारों के कारण उनका आनंद कम होता है। एक महिला कर्मचारी ने कहा कि उनके दिमाग ने विचारों का प्रवाह इतना अधिक होता है या इतने अधिक विचार आते-जाते हैं कि उनका मानसिक शांति खत्म हो जाती है। उपस्थित कर्मचारियों ने स्वीकार किया कि दोहरे व्यक्तित्व के कारण आनंद बाधित होता है। लगातार अल्पविराम के शांत समय में मन के शुद्धिकरण की प्रक्रिया हमें अंदर से मजबूत बनाती है।
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