छतरपुर। शासकीय कर्मचारियों में सकारात्मक परिवर्तन के लिए चल रहे अल्पविराम कार्यक्रम से कतिपय कर्मचारियों के जीवन में बदलाव देखने मिल रहा है। पूर्व सीएमओ रामगुलाम द्विवेदी अपने साथियों के साथ 41 साल बाद अपने गुरूजी को धन्यवाद करने उनके घर पहुंचे। वहीं दूसरी ओर कम्प्यूटर ऑपरेटर सद्दाम हुसैन अब मछलियों को दाना चुगाने की जगह तालाब किनारे की पॉलीथिन बीनते हैं। कुछ कर्मचारियों ने नियमित रूप से मौन रहकर आत्मा की आवाज सुनने का क्रम जारी रखा है जिससे उनके जीवन में आनंद का संचार हो रहा है। कलेक्टर रमेश भण्डारी के मार्गदर्शन में आनंदम सहयोगी लखनलाल असाटी द्वारा कलेक्ट्रेट सभाकक्ष में 20 मार्च से अल्पविराम कार्यक्रम किया जा रहा है। अल्पविराम में अंर्तात्मा की आवाज सुनकर स्वयं दिशा और मार्गदर्शन प्राप्त किया जा सकता है। कार्यालय में किसी भी कर्मचारी का कार्यव्यवहार इस बात का प्रमाण हो सकता है कि वह अपनी जिंदगी में क्या प्राप्त करना चाहता है। जिला शहरी विकास अभिकरण कार्यालय में पदस्थ रामगुलाम द्विवेदी लवकुशनगर जनपद के टहनगा गांव के निवासी हैं। सन् 1973 से 76 तक वह मिडिल स्कूल की पढ़ाई के लिए पांच किमी दूर ग्राम बलकौरा जाते थे। बीच में नदी भी पार करना होती थी। ऐसे समय समीपी रजपुरवा निवासी शिक्षक स्वामीदीन प्रजापति बच्चों को एक साथ नदी पार कराकर बलकौरा स्कूल ले जाते थे और वापस नदी से सुरक्षित पार कराकर टहनगा छोड़ते थे जिस कारण इन छात्रों की पढ़ाई पूरी हो पायी। रामगुलाम द्विवेदी के साथी रामपाल तिवारी पशु चिकित्सा विभाग में, चतुरेश तिवारी सहकारिता में, राजेन्द्र द्विवेदी तहसील में और लोचन सिंह स्वास्थ्य विभाग में कार्यरत हैं। श्री द्विवेदी ने मौन अभ्यास के दौरान अपने बचपन को याद किया और उनके जीवन में आनंद का कारण बने स्वामीदीन प्रजापति की खोज प्रारंभ की। तब उन्हें पता लगा कि वे प्राचार्य पद से सेवानिवृत्त होकर बजरंगनगर छतरपुर में रहते हैं। पूरे 41 साल बाद सभी साथी उनके घर पहुंचे और गुरूजी को फूलमालाओं से लादकर उनके चरण पकड़ लिए। यह दृश्य अद्भुत था और गुरूजी की आंखों से अविरल अश्रुधारा बह रही है। सभी शिष्यों की आंखें भी नम पर हृदय आनंदित था। जिला योजना मण्डल में कार्यरत कम्प्यूटर ऑपरेटर नारायण बाग निवासी सद्दाम हुसैन ने बताया कि वह सुबह 6 बजे प्रताप सागर में मछलियों को दाना चुगाने नियमित जाते हैं जहां उन्होंने देखा कि अन्य लोग भी मछलियों को दाना खिलाने के बाद पॉलीथिन वहीं छोड़ देते थे। अल्पविराम में शामिल होने पर उन्हें विचार आया कि दाना खिलाने से भी अधिक पुण्य का कार्य प्रताप सागर को स्वच्छ रखना है तबसे वह पॉलीथिन उठाकर उन्हें डस्टबिन में डालने का काम करने लगे हैं।
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