यदि ज्यादा पढ़े लिखे से ज्यादा भय, फिर शिक्षा की भूमिका क्या
छतरपुर। शासकीय एक्सीलेंस स्कूल छतरपुर में मंगलवार से जिले के प्राचार्यों की 5 दिवसीय कार्यशाला का शुभारंभ एडीपीसी आरएस भदौरिया, प्राचार्य विद्याधर नातू, सुरेन्द्र सक्सेना, रघुवंश गुरूदेव ने दीप प्रज्जवलित कर किया। लोक शिक्षण संचालनालय द्वारा मास्टर ट्रेनर एवं प्राचार्य अनिल श्रीवास्तव, राममिलन सिंह, बसंतलाल प्रजापति एवं सोमचन्द्र विश्वकर्मा द्वारा प्रशासनिक वित्तीय एवं अकादमिक विषयों पर विस्तार से जानकारी दी जा रही है।उद्घाटन सत्र में मानव में शिक्षा संस्कार हेतु शिक्षकों के रोल पर आनंद विभाग के जिला संपर्क व्यक्ति एवं प्राचार्य लखनलाल असाटी ने संवाद किया। एक प्रश्न के माध्यम से सत्र की शुरूआत की गई कि आज मानव को सर्वाधिक भय हिंसक पशुओं, प्राकृतिक आपदा, मानव के अमानवीय व्यवहार तीन में से किससे अधिक है। प्राय: सभी ने कहा कि मानव के अमानवीय व्यवहार से और वह भी बिना पढ़े लिखे की जगह पढ़े लिखे व्यक्ति से। अधिक पढ़े लिखे व्यक्ति से और अधिक। अगर स्थिति यही है तो एक शिक्षक की भूमिका विचारणीय लगती है। वर्तमान परिवेश में शिक्षा एवं कौशल में सबकुछ पहले से अधिक बेहतर दिखाई देता है पर इसके बावजूद समाज में संबंध और सुख का अभाव क्यों है।लखनलाल असाटी ने बताया कि मैं और मेरा शरीर के सहअस्तित्व को मानव के रूप में स्वीकार करने पर हमें मैं और मेरे शरीर की आवश्यकताओं, क्रियाओं, उनके रिस्पोंड आदि की अलग-अलग जानकारी मिलती है। अभी मैं की आवश्यकताओं को शरीर की आवश्यकताओं के माध्यम से पूरा करने के प्रयास में व्यक्ति सुविधाओं के संग्रह में लगा हुआ है। उसने संबंधों के ऊपर सुविधा पर अधिक ध्यान केन्द्रित किया हुआ है। खुद की कल्पनाशीलता में चल रही इच्छा, विचार और आशा को वह सही-सही देख नहीं पा रहा है। एक बार सही समझ और सही भाव के साथ वह जीने लगता है तो उसके जीने का तरीका बदल जाता है।
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