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प्रदेश के स्कूलों में सार्वभौमिक मानव मूल्यों की शिक्षा हेतु आनंद सभा की तैयारियां

प्रेषक का नाम :- लखनलाल असाटी जिला संपर्क व्यक्ति छतरपुर
स्‍थल :- Chhatarpur
03 Jan, 2023

भोपाल,राज्य आनंद संस्थान भोपाल के ऑडिटोरियम में 2 जनवरी 2023 से प्रारंभ सार्वभौमिक मानव मूल्यों की छह दिवसीय कार्यशाला के पहले दिन के शुभारंभ सत्र के दौरान मुख्य कार्यपालन अधिकारी श्री अखिलेश कुमार अर्गल, सलाहकार श्री सत्य प्रकाश आर्य छतरपुर से लखन लाल असाटी और यूएचव्ही की तरफ से भैया श्री गौरव मिश्रा लखनऊ साथ में श्री जितेश कुमार श्रीवास्तव श्री प्रदीप महतो और श्री महर्षि माथुर *समग्र विकास में शिक्षा की भूमिका* बड़ा प्रश्न: क्या हम संबंधी के रूप में रहना चाहते हैं? यह संवाद शुरू में तो मेरे और आपके बीच में होगा, पर धीरे-धीरे यह स्वयं में चलने लगता है| एक संबंध तो मेरा खून का है और दूसरा आसपास सभी से, पर मेरी सहज स्वीकृति यही है कि हम विरोध में नहीं रहना चाहते, हालांकि परिस्थितियां कभी-कभी ऐसी बन जाती है, हम किसी ग्रुप में हैं और बातचीत नहीं करना चाहते, न्यूटल रहना चाहता हूं! पर देखें कि इससे भी क्या मैं परेशान हूं? उदाहरण के तौर पर लें हमें भ्रष्टाचार खराब लगता है, इसके विरोध में आवाज भी उठाना चाहते हैं पर उठाते नहीं क्योंकि विरोध करने में मुझे असहजता लगती है, मेरी मूल प्रवृत्ति विरोध नहीं संबंध का भाव है *जो मैं हूं और जैसा मैं होना चाहता हूं*  इन दोनों स्थितियों के बीच का अंतर जितना कम होगा, हम इतने सहज होंगे पर जैसे-जैसे गेप बढ़ता है उलझन बढ़ती है फ्रस्ट्रेशन बढ़ता है टेंशन बढ़ता है डिप्रेशन बढ़ता है यहां तक की जीवन व्यर्थ लगने लगता है, हम हमेशा खुश रहना चाहते हैं यह स्वीकृति समय उम्र और स्थान कभी भी नहीं बदलती यह सभी में कॉमन है, *शिक्षा की भूमिका : सर्वांगीण विकास*  मानव में निश्चित मानवीय आचरण से जीने की योग्यता विकसित करना ही शिक्षा की भूमिका है, वस्तुतः देखें आपके लिए तीनों में से कौन सा भय प्रमुख है  1 हिंसक पशुओं से 2 प्राकृतिक आपदा से  3 मानव के अमानवीय व्यवहार से  सभी को मानव के अमानवीय व्यवहार से अधिक भय है हम यह भी देख पा रहे हैं कि यह भय बढ़ रहा है अथवा घट रहा है ? जैसे-जैसे साक्षरता बढ़ रही है मानव के अमानवीय व्यवहार का भय भी बढ़ रहा है, पशुओं का आचरण हमें मालूम है और हम वैसा व्यवहार करते हैं पर मानव का आचरण ? शिक्षक कहते हैं माता-पिता क्या सिखा रहे हैं? और अभिभावक कह रहे हैं स्कूल क्या सिखा रहा है?  1947 में साक्षरता की दर 12% थी जो 2011 में बढ़कर 74 हो गई है पर मूल्यों का क्या हुआ? लगता है स्थिति विषम है, रास्ता क्या है? अगली पीढ़ी के पास जो समस्या पहुंचने वाली है क्या आज हम उसके प्रति गंभीर है, यदि हां तो इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा शुरुआत कौन करेगा निश्चित रूप से इसमें सबसे बड़ा रोल शिक्षक का है हम सभी सुखी होना चाहते हैं समृद्ध भी होना चाहते हैं और सुख समृद्धि की निरंतरता भी चाहे थे *अभाव का अभाव ही आनंद है* हर पल हर क्षण उत्सव का माहौल यही आनंद है यथार्थ में देखें तो जब हम अपने बच्चों को भी डांट रहे होते हैं तो उस समय क्या हम सहज महसूस करते हैं ? नहीं !  अब हमें देखना यह है कि क्या हम सुखी हैं ? क्या हम समृद्ध हैं ? क्या हमारे सुख और समृद्धि की निरंतरता है ?  यदि नहीं, तो इस चाहने और होने के बीच के गैप को हमें देखना है क्योंकि यह अंतर जितना अधिक होगा आंतरिक संघर्ष भी उतना अधिक होगा, इस गैप को खत्म करने के लिए हमें भोगी अथवा त्यागी बनने की जगह सही समझ के साथ सदुपयोग पर फोकस करना है सुख समृद्धि की निरंतरता केवल सुविधा संग्रह के अर्थ में अथवा कुछ और? *पशु मानव और सुविधा* देखा जाए तो पशु को सुविधा का अभाव होता है तो वह भी परेशान होता है सुविधा मिल जाए तो वह आराम में आ जाता है जैसे पेट भर घास मिल जाए तो गाय आराम से जुगाली करती है, मनुष्य को सुविधा का अभाव होता है तो वह भी परेशान और दुखी होता है परंतु सुविधा मिल जाए तो वह उसके बारे में भूल जाता है और दूसरी चीजें सोचने लगता है जो उसके निरंतर विचारों के रूप में चलती रहती है हमें किसी को भी यह याद नहीं है कि मेरे पास कितने कपड़े हैं पर कोई फंक्शन है तो अलग ड्रेस चाहिए ना भी हो तो अमेजॉन फ्लिपकार्ट का कोई भी ऑफर हमारी आवश्यकता बन जाती है बड़ा इंटरेस्टिंग है कि हम अपनी आवश्यकताओं को पूरा कर रहे हैं या दूसरे की मनोकामना? मेरे परिवार में जो दुख है वह सुविधा के अभाव में ज्यादा है अथवा संबंध का निर्वाह न होने के कारण अधिक है, मैं सुविधा जुटाने के लिए कितना समय और प्रयास लगा रहा हूं और संबंध के निरहुआ के लिए कितना समय और प्रयास लगा रहा हूं सुविधा जुटाने की स्थिति यह है कि आजकल पति पत्नी दोनों को कमाना पड़ रहा है, वस्तुतः दुख संबंध का निर्वाह न होने के कारण अधिक है परंतु समय और प्रयास सुविधा के लिए अधिक लगाया जा रहा है पशु के लिए सुविधा आवश्यक और पूर्ण है पर मानव के लिए सुविधा आवश्यक तो है पर पूर्ण नहीं  हमारी चाहना संबंध पूर्वक जीने की है पर अभी यह मान रखा है जीना तो विरोध पूर्वक ही संभव है *स्ट्रगल फॉर सर्वाइवल*, *सर्वाइवल आफ द फिटेस्ट* पर क्या ऐसे जीने में हम सुखी होते हैं खून से रिश्ते बनते जरूर हैं नाम भी मिल जाते हैं पर निभाने के लिए राइट अंडरस्टैंडिंग अर्थात सही समझ की आवश्यकता होती है अब हम देख पाते हैं कि हमें समझ, सुविधा और संबंध तीनों की आवश्यकता है पर तीनों में हम प्रमुखता किसे दे रहे हैं सिर्फ सुविधा पर फोकस करेंगे तो दूसरों का और प्रकृति का शोषण ही करेंगे हम क्या है? 1 सुविधा विहीन दुखी दरिद्र  2 सुविधा संपन्न दुखी दरिद्र 3 सुविधा संपन्न सुखी समृद्ध   अब हमें देखना है हम कहां खड़े हैं? जब हम सही समझ के साथ संबंधों का निर्वाह करते हैं तो उभय सुख की प्राप्ति होती है मैं भी सुखी रहता हूं दूसरों को भी सुखी करता हूं  जब हम सही समझ के साथ प्रकृति का उपयोग करते हैं तो उभय समृद्धि मिलती है यदि सुविधा हम प्रकृति से ले रहे हैं तो प्रकृति को भी समृद्ध करना है देखा जाए मानव को पूरे जीवन काल में 6 बड़े पेड़ों की आवश्यकता होती है घर गृहस्थी से लेकर अंतिम संस्कार तक के लिए और पूरे जीवन काल में 6 बड़े पेड़ लगा देना कोई बड़ा काम नहीं है,FAO की 11 मई 2011 की रिपोर्ट के अनुसार संसार में हमारी आवश्यकता से 6 गुना अधिक खाद्यान्न का उत्पादन होता है पर उसमें से एक तिहाई बर्बाद हो जाता है जिससे 1 साल में 13 सौ करोड़ लोगों का पेट भरा जा सकता है उधर मात्र 6 घंटे में 400 लोगों के अधिक भूख से जुड़ी बीमारियों के कारण दम तोड़ देते हैं जीव चेतना से मानव चेतना में जाना ही समग्र विकास है और मानव चेतना में पहुंचने के लिए सबसे महत्वपूर्ण है  *शिक्षा और संस्कार* और इसके लिए आवश्यक है प्रत्येक बच्चे में सही समझ, प्रत्येक दूसरे व्यक्ति के साथ संबंध का भाव,भौतिक आवश्यकता की सही पहचान, समृद्धि के भाव के लिए आवश्यकता से अधिक टिकाऊ उत्पादन का कौशल अभ्यास, टेक्नोलॉजी मानव के लिए है, मानव टेक्नोलॉजी के लिए नहीं, सही समझ की आवश्यकता है खुद में, परिवार में, समाज में, प्रकृति और अस्तित्व में, कौशल शिक्षा को मूल्यों के साथ जोड़ना है  सही समझ के साथ व्यवहार परिवार और समाज के साथ करना है तथा कार्य प्रकृति के साथ| 


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