आनंदम से मिले नए कपडे पहनकर खुश होते हैं
फटे कपड़े पहनने से “”दुख”” होता है। गरीबी का दर्द क्या होता है,यह एक गरीब को ही मालूम है जब एक मजदूर दिनभर की मजदूरी में केवल स्वयं का ,बाल-बच्चों का पेट ही भर पाता है। तीज-त्यौहार में नये कपडे़ खरीदने, पहनने का सपना तो यथार्थ से कोसों दूर है। राज्य आनंद संस्थान के अंतर्गत आनंदम् ( दुआओं का घर ) मंड़ला से जब इन्हें मनमुताबिक नये/अच्छे कपड़े निःशुल्क कपडे़ मिलते हैं तब इनका दर्द और खुशी स्वयं ही बाहर आ जाती है खुद बताते है कि फटे-पुराने कपडे़ पहनने से बहुत दुःख होता है। नए मिल गए तो खुश हो लिए।
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