आनंदम् स्थल- बाॅटने का आनंद
दिनांक 14.01.2017 को सर्वप्रथम आनंद मंत्रालय की अवधारणा को साकार रूप देने वाले प्रदेश के यशस्वी मुख्यमंत्री माननीय् शिवराज सिंह के उद्बोधन का सीधा प्रसारण किया गया। इस अवसर पर जिला मुख्यालय पर जिला स्तरीय कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें जिले के जन प्रतिनिधियों ने उत्साहपूर्वक सहभागिता की। कार्यक्रम/आयोजन में मुख्य रूप से माननीय् श्री के.के.श्रीवास्तव (विधायक टीकमगढ़), माननीय् श्री अनिल जैन (विधायक निवाड़ी), माननीय् श्री पर्वतलाल अहिरवार (जिला पंचायत अध्यक्ष), माननीय् श्रीमती लक्ष्मी गिरि गोस्वामी (अध्यक्ष नगर पालिका टीकमगढ़) एवं कलेक्टर श्रीमती प्रियंका दास तथा जिले के सभी विभाग प्रमुख, अन्य वरिष्ठ अधिकारी, कर्मचारी एवं गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे। बुन्देलखण्ड की आंचलिक संस्कृति को रजत पट पर स्थापित कराने में विशेष योगदान देने वाले सिनेस्टार श्री राजा बुन्देला भी इस आयोजन में विशेष रूप से उपस्थित थे। माननीय् मुख्यमंत्री की भावनाओं को साकार रूप देने के लिए सिविल लाइन में विश्राम गृह के सामने ‘‘नेकी की दीवार‘‘ (आनंदम् स्थल) का शुभांरभ किया गया। माननीय् मुख्यमंत्री का प्रेरक और हृदय स्पर्शी उद्बोधन सभी के मर्म को छू गया। सभी के मन में एक ही भाव था कि आनंद कोई वस्तु नही एक मनोदशा है, एक स्वभाव है। यही कारण है कि जीवन की छोटी-छोटी बातों और घटनाओं से भी आनंद ग्रहण किया जा सकता है या किया जाता है। भारतीय संस्कृति में आनंद को सर्वोपरि स्थान दिया गया है तथा इसे वस्तुओं से नही, मन और आत्मा से जोड़ा गया है। सग्रह की अपेक्षा त्याग को आनंद का सर्वश्रेष्ठ स्रोत माना गया है। यही कारण है कि भारतीय सामाजिक जीवन में दान को इतना महत्व दिया गया है। ऋषि दधिचि, महाराज शिवि, सम्राट हर्षवर्धन के दान आज भी स्मरण किये जाते है। इसी भाव को लेकर नेकी की दिवार ‘‘आनंदम् स्थल‘‘ के शुभांरभ पर उपस्थित जन प्रतिनिधियों, अधिकारियों, कर्मचारियों, गणमान्य नागरिकों के साथ-साथ सैकड़ों आम उदारमना नागरिकों ने जरूरतमंद लोगो के लिए सभी प्रकार की उपयोगी वस्तुओं का दान किया, जिसकी कलेक्टर श्रीमती प्रियंका दास ने भूरी-भूरी प्रशंसा और सराहना की। लेने वालों से अधिक बड़ा सुख या आनंद देने वालों के मुख पर झलक रहा था। अन्न वस्त्र, दैनिक गृह उपयोगी सामान, बच्चों के खेल खिलौने आदि का ढेर लग गया था। होड़ लेने वालों में नही देने वालों में लगी थी। आनंदम् स्थल लेने और देने के असीम आनंद आनंद का प्रतीक बन चुका है।
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