एएनएम ने कहा जीते जी नहीं भूलेंगे अल्पविराम
जीते जी नहीं भूलेंगे अल्पविराम मायके में मां के अभाव में घटता है आनंद, घर पहुंचने पर बेटा पानी लेकर दौड़ता है तो बढ़ जाता है आनंद छतरपुर। जिला चिकित्सालय सहित विभिन्न अस्पतालों में कार्यरत एएनएम ने अल्पविराम का तीन दिवसीय प्रशिक्षण लेने के बाद अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि यह उनके अपने जीवन का सबसे अलग अनुभव था। नौगांव के क्षेत्रीय ग्रामीण विकास प्रशिक्षण केन्द्र में मास्टर ट्रेनर लखनलाल असाटी, राजेन्द्र असाटी कटनी, डॉ. केपी तिवारी सतना एवं आईआइटी रूढ़की के रोशन कुमार ने अल्पविराम का प्रशिक्षण दिया। डीपीएम राजेंद्र खरे एवं नेकी सेवालय नौगांव के अभिषेक त्रिपाठी गुड्डू भैया ने भी फ्री डम गिलास के माध्यम से अपने परिवर्तन की कहानी साझा की गुलगंज की मिथलेश नामदेव ने कहा कि अल्पविराम को वह जीवन में भुला नहीं पाएंगी। प्रशिक्षण में भारी मन से शामिल हुई थीं पर बहुत हल्का महसूस कर जा रही हैं। भैरा की रामप्यारी यादव ने कहा कि जब तक हम जिंदा रहेंगे अल्पविराम की क्रिया को खुद और परिवार में जारी रखेंगे। नैगुवां की अल्पना खरे ने कहा कि इस प्रशिक्षण में कोई पढ़ाई नहीं थी टेंशन कम आराम अधिक था। बक्स्वाहा की खतीजा बेगम ने कहा कि रोज सुबह वह 10 मिनिट शांत रहकर अपने कठिन कार्यों को सहज बनाएंगी। जिला चिकित्सालय की ललिता अहिरवार ने कहा कि अल्पविराम से उन्होंने प्रकृति और परिवार से चर्चा करना सीखा है। अंधियारीबारी की विनीता यादव ने कहा कि शांत समय लेने पर उनके ध्यान में वह सब बातें आईं जो घर में रहकर नहीं आती थीं। हरपालपुर की प्रतिष्ठा श्रीवास्तव ने कहा कि अल्पविराम से उन्होंने सीखा है कि भाग-दौड़ भरी जिंदगी में भी वह अपने लिए समय निकालेंगी। जिला चिकित्सालय की माया अहिरवार ने कहा कि प्रशिक्षण में उन्हें अपनी गलतियों का अहसास हुआ। मन में ऐसे विचार आए जिनको उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था। इस प्रशिक्षण में विभागीय कार्यों की कोई बात नहीं हुई। सेंधपा की पार्वती सोनी ने कहा कि मन को शांत रखने से शक्ति मिली। बसारी की मधुबाला पटैरिया ने कहा कि इस प्रशिक्षण में लिखना नहीं था बल्कि सोचना था। सिंहपुर खड़ेहा की पूजा अहिरवार ने कहा कि प्रशिक्षण में खुद के लिए समय देने और खुद को पहचानने की सीख दी। भगवां की माया अहिरवार ने कहा कि तीन दिवसीय प्रशिक्षण के पहले दिन उन्होंने खुद से तो दूसरे दिन पेड़ पौधों से वहीं तीसरे दिन ईश्वर से बातचीत की। अपने जीवन में आनंद की स्थिति बताते हुए नर्सों ने कहा कि मायके में मां के अभाव से आनंद घटता है पर ड्यूटी से लौटकर जब वह घर पहुंचती हैं और बच्चे दौड़कर पानी लेकर आते हैं तो दिन भर की थकान मिट जाती है। बच्चों को बनाएं जिद्दी और बेशर्म: रोशन कुमार आईआईटी रूढ़की के फाइनल ईयर में अध्ययनरत मैकेनिकल इंजीनियरिंग के छात्र रोशन कुमार दो माह के लिए छतरपुर जिले के मंगलग्राम ललौनी और सौंरा में इंटर्नशिप कर रहे हैं। उन्होंने अल्पविराम प्रशिक्षण में अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि बच्चों का जिद्दी और बेशर्म होना भी उनके हित में है। कई बार झिझक के कारण छात्र अपने शिक्षक से अपनी शंकाओं की अभिव्यक्ति नहीं करता है। कभी कभार उसने की और शिक्षक ने टाल दिया तो फिर वह दोबारा अपनी बात नहीं रखता है। यदि बच्चा बेशर्म होगा तो वह बार-बार अपनी बात रखेगा। जिद्दी बच्चे ही अपनी मंजिल आसानी से पा लेते हैं। क्योंकि उनकी लगन पक्की होती है। लोगों के जीवन में आनंद की स्वाभाविकता बनी रहे इसके लिए जरूरी है कि उसे हर समय अपनी क्षमताओं का सही-सही ज्ञान होना चाहिए।
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