राज्य आनंद संस्थान नागरिकों के आंतरिक आनंद की अनुभूति के लिए उन्हें अल्पविराम कार्यक्रम के माध्यम से अपनी अंतर्रात्मा से जुड़कर उसके आधार पर जीवन संचालन के बारे में बात करता है। यह महसूस किया जा रहा है कि मानव मूलत: स्वयं, परिवार, समाज तथा शेष प्रकृति के साथ कार्य व्यवहार करता है। इन चारों ही आयामों में एक व्यवस्था काम करती है, जिसके आधार पर अनुकूलन के साथ व्यक्ति के कार्य व्यवहार के आधार पर उसे सुख या दु:ख की अनुभूति होती है। इनके बारे में यदि व्यक्ति की समझ स्पष्ट हो तो वह अपने आचरण को निश्चित कर सकता है और सभी के साथ सह-अस्तित्व में निरंतर आनंद में रह सकता है।
इसे समझने के लिए मूलत: हमें सुविधा, संबंध तथा समझ के महत्व व प्राथमिकता को स्पष्ट करना होगा। सुविधा के पीछे भागकर उसके माध्यम से आनंद की प्राप्ति की संभावना बहुत ही सीमित है। इसके अनेक उदाहरण हैं - सुविधा संपन्न लोग, जिनके पास धन-दौलत, पद, प्रतिष्ठा सब है,लेकिन वे आनंद में नहीं हैं। ऐसे में संबंध का महत्व आनंद के लिए स्पष्ट होता है। सही भाव के साथ संबंध में जीना आनंद को बढ़ाता है।
इन सबकी समझ बनाने के लिए हमें प्रकृति की चारों अवस्था यथा पदार्थ (जड़), प्राणी, जीव तथा ज्ञान को भी देखना है। इन चारों आयामों में एक व्यवस्था कायम है। इस व्यवस्था को समझकर उसके अनुकूल संगत रहे तो आनंद में रहेंगे। जैसे ही इस व्यवस्था के विरोध में जाते हैं तो हमारा आनंद कम होने लगता है। इन सारी बातों में समझने तथा अपने अंतर्रात्मा की आवाज (सहज स्वीकृति) के आधार पर अपने कार्य व्यवहार, भाव, विचार, मान्यताओं को निरंतर जांच कर आनंदित रहने का निर्णय स्वयं के आधार पर लिया जा सकता है। बाहर की चीजें हमारे आनंद को प्रभावित नहीं कर सकेंगी।
‘’आनंद की ओर’’ कार्यक्रम में प्रदेश के नागरिकों को उपरोक्त विषय वस्तु के बारे में जागरूक करने तथा उन्हें अपनी सहज स्वीकृति (अंदर की आवाज) के आधार पर कार्य व्यवहार करते हुए प्रसन्न रहने की प्रविधियों पर चर्चा की जाएगी। यह तीन से छ: दिवसीय कार्यक्रम सार्वभौमिक मानवीय मूल्य टीम, अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद के सहयोग से राज्य आनंद संस्थान द्वारा मध्यप्रदेश में संचालित किया जा रहा है। संस्थान का प्रयास है कि अपने आनंदकों को इस कार्यक्रम के साथ जोड़ा जाए, जिससे उनका जीवन आनंदमयी हो और दूसरों को भी प्रेरित कर सके।
अत: संस्थान के आनंदक जिन्होंने अल्पविराम के माध्यम से स्वयं के जुड़ाव को समझ लिया है, उनको और गहराई से परिवार, समाज तथा शेष प्रकृति के साथ संबंध तथा जुड़ाव को स्पष्ट करने हेतु आनंद की ओर कार्यक्रम का आरंभ किया गया है ।