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अल्‍प विराम से मिली आनंद क्‍लब की प्रेरणा-  अभिषेक त्रिपाठी 

प्रेषक का नाम :- लखनलाल असाटी आनंदम सहयोगी जिला छतरपुर
स्‍थल :- Chhatarpur
01 May, 2019

अल्‍प विराम से मिली आनंद क्‍लब की प्रेरणा-  अभिषेक त्रिपाठी ने एएनएम अल्प शिविर में बताई अपनी कहानी छतरपुर। उन्‍हीं के शब्‍दों में

मेरा जन्म एक सुसंस्कृत एवं संपन्न परिवार में हुआ था, बचपन से ही मैं जिद्दी, उद्दंड और अनुशासनहीन बच्चा था जब पापा पृथ्वीपुर में पदस्थ थे तब मैं 5-6 वर्ष की आयु में ही मैं स्कूल से गायब हो जाता था और ढूंढने पर किसी वीडियो में सोता हुआ पाया जाता था| मेरे माता पिता ने परेशान होकर मुझे हरपालपुर में मेरे ताऊजी के पास रहने भेज दिया| वहाँ एक बड़े लड़के ने धक्के से मेरे मित्र को गिरा दिया जिससे उसके हाँथ की हड्डी फ्रैक्चर हो गयी जिसके जवाब में अगले दिन बदला लेने के उद्देश्य से मैंने उस लड़के के पैरों में पाइप से जोर से मारा उसे लम्बे समय तक उस चोट का इलाज करना पड़ा| इस घटना के परिणामस्वरूप ताऊजी द्वारा भी मुझे साथ रखने से इनकार करते हुये मुझे माता पिता के पास वापिस भेज दिया| मेरे पिता जब सिवनी जिले के केवलारी में तहसीलदार के पद पर पदस्थ थे तब मुझे एक साईकिल मिली हुयी थी और वहीँ पापा के अधीन कार्य करने वाले पटवारी का पुत्र नयी मोटरसाइकिल से आता जाता था, हम दोनों साथ साथ घुमते थे वह मेरे साथ धीरे धीरे बाइक चलाते हुये चलता था| मेरे पिता ने मुझे कभी फिजूलखर्ची के लिये पैसे नहीं दिये जबकि बाकी बच्चे खुलकर अपने ऊलजुलूल शौक पूरे करते थे| किशोरावस्था से ही मैं अपने प्रति पापा के व्यवहार को मैंने बहुत खराब माना और मेरे अन्दर नकारात्मक भाव निरंतर बढ़ते गये| पापा की बिजावर पदस्थापना के समय हायर सेकेंडरी स्कूल में चुनाव मैं किसी को भाग नहीं लेने दिया और जबरदस्ती अध्यक्ष बन बैठा, इस पर मेरे पिता अत्यधिक नाराज हुये और स्कूल प्रबंधन को यहाँ तक कहा की यह चुनाव निरस्त कर दिए जायें| *मेरा व्यवहार इतना खराब हो चुका था कि किसी मुद्दे पर चार सौ से अधिक लड़कों के साथ मैंने अपने ही पिता की तहसील का घेराव कर डाला*| और मजबूरन मुझे छतरपुर में मामा के साथ शिफ्ट कर दिया गया| छतरपुर में रहते हुये महाराजा कॉलेज में अध्ययन करते समय मेरे लडाई झगडे आदि चरम पर थे| लेकिन मैं स्वयं को सही और अन्य सभी को गलत मानता रहा| *मैंने कभी किसी की चिंता नहीं की, मैं कभी भी अपने परिवार को विश्वास में नहीं लेता था*. मेरे लिए हीरोपुक से अकेले पचमढ़ी चले जाना, बिना बताए नेपाल चले जाना, घर से गायब रहना मेरे लिए मामूली सी बात थी| *मेरे पिता मेरे बर्ताव के कारण बहुत परेशान थे और वह 3 दिनों झांसी अस्पताल में अत्यधिक गंभीर हालत में आई सी यू में भर्ती रहे और 3 माह तक आराम करना पड़ा* तब मैंने दिल्ली से वापिस आकर अपने नगर नौगाँव में रहना निश्चित किया किन्तु वह भी माता पिता की इच्छा के बिरुद्ध ही था| मुझे अच्छे से याद है की जहां दूसरे अधिकारियों के बच्चे अपने पिता की लाल और पीली बत्ती लगी गाडी को व्यक्तिगत वाहन समझकर स्वयं चलते रहते थे वहीँ पापा ने मुझे पापा ने अपनी सरकारी गाडी का कभी उपयोग नहीं करने दिया, जब पापा पन्ना में जॉइंट कलेक्टर के रूप में पदस्थ थे तब मेरी कार खराब हो जाने के कारण कलेक्ट्रेट के पास सुधर रही थी तब पापा ने स्वयं कार्यालय जाते समय वहाँ छोड़ा था| *लाल बत्ती लगे वाहन का उपयोग नहीं कर पाने का मुझे हमेशा मलाल रहा|* *मेरे अपने बड़े भाई और छोटी बहिन से भी सम्बन्ध हमेशा खराब रहे और बार लम्बे समय तक मैं अपने माता पिता से भी बात नहीं करता था|* मेरी शादी मेरे परिवार द्वारा ही की गयी किन्तु मेरे बर्ताव के कारण शादी से पूर्व प्रीति को देखने मैं अकेला ही गया था परिवार का कोई भी सदस्य न तो मेरे साथ था ना ही बाद में गया| यहाँ तक कि *बरात से लौटने पर पता चला वैवाहिक जीवन की शुरुवात में ही हम दोनों को अलग घर में रहना है|* आप समझ सकते हैं कि मेरी धर्मपत्नी प्रीति ने उस समय किन परिस्थितियों का कैसे सामना किया होगा| मैं कंप्यूटर से जुड़े कार्यों के साथ ही पंजाब टेक्निकल यूनिवर्सिटी के स्टडी सेंटर का सफलतापूर्वक सञ्चालन कर रहा था, तभी सन 2010 में मध्यप्रदेश शासन द्वारा अन्य राज्यों के विश्वविद्यालयों पर रोक लगा देने के कारण मुझे वह काम बंद करते हुये छात्रों की जो फीस यूनिवर्सिटी भेजी जा चुकी थी मुझे स्वयं लाखों रुपये कर्ज लेकर वापिस करना पड़ा, मेरे स्वभाव के कारण कोई सहयोग को आगे नहीं आ रहा था तब *मेरी पत्नी को अपने आभूषण बैंक में गिरवी रखने पड़े* मेरी यह हालत हो गयी थी कि *मैं नींद की गोलियां खाकर सोता था|* *शादी के पश्चात् मेरी धर्मपत्नी के प्रति सभी के रूखे व्यवहार को देखकर मैं शांत समय लेने को मजबूर हुआ, तब चिंतन के पश्चात समझ आया कि मैं स्वयं गलत हूँ धीरे धीरे अपने अन्दर निरन्तर बदलाव लाता गया, प्रीति के सहयोग से सभी के साथ रिश्ता सुधारने का प्रयत्न किया तो काफी हद तक सफलता भी प्राप्त हुयी|* व्यवसाय में बड़ा नुकसान होने के बाद मेरी पत्नी प्रीति ने मेरा पूरा साथ दिया, हमने नया स्कूल खोला, नए सिरे से जीवन की शुरुवात की, और तय किया कि अपनी आय का एक निश्चित हिस्सा जरूरतमंद की मदद में खर्च करना है| बिना पिता की जरूरतमंद बच्चियों की पढाई में सहायता करता था जिसे अब निरंतर आगे बढाने का निश्चय किया| *निरंतर शांत समय लेने का लाभ यह हुआ कि मैं जिसने कभी परिवार की भी चिंता नहीं की थी, पर अब मैंने नौगांव में गरीबों के लिए प्रतिदिन भोजन, गर्मियों में आर. ओ. का ठंडा पानी, ठंड के दिनों में गर्म कपड़े, घायलों को अस्पताल पहुंचाने इमरजेंसी वाहन, अनाथ बच्चों की निशुल्क पढ़ाई जैसे काम नेकी सेवालय के नाम से शुरू कर दिए है* जिससे मेरे जीवन में बहुत ही सुख और शांति बड़ी है *और अब मैं बिना नींद की गोली खाए आराम से सोता हूं|* *जब मैंने नौगाँव में नेकी की रसोई शुरू की तब मेरी पत्नी ने अपनी समस्त पूंजी जो उसके पास ₹135000 थे मुझे सहर्ष दे दिए, आज लगभग रोज सौ से ढाई सौ लोग नेकी की रसोई में भोजन करते हैं और उन्हें हम रोटी, छोले / पनीर की सब्जी और पुलाव जैसा स्वादिष्ट भोजन रोज कराते हैं| और निरंतर प्रयत्न करते रहेंगे| इस मौके पर उनकी पत्नी प्रीति त्रिपाठी ने भी विचार साझा करते हुए कहा कि जब तक दुनिया में दोष देखते रहेंगे हम दुखी रहेंगे, हम श्रेष्ठ हैं और सब बेकार हैं, यह हमारी सबसे बड़ी समस्या है. यदि परिवार में कोई कमी है तो उसका मतलब है कि हममें खुद कोई कमी है उन्होंने कहा कि उन्होंने वही किया जो उनकी आत्मा को अच्छा लगा और वह अपने पति के साथ नेक काम करके अपनी दोनों बेटियों के साथ आनंदित जीवन व्यतीत कर रही हैं अपनी ससुराल में अब उन्हें अपने जेठ जेठानी ननद सास ससुर सभी का भरपूर स्नेह प्राप्त है.