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आनंद प्राप्‍त करने के लिए कोई उपलब्धि या वस्‍तु प्राप्‍त करने की आवश्‍यकता नहीं है। आनंद तो कुछ करके प्राप्‍त किया जा सकता हैं, किसी की मदद, कोई खेल, नई चीजें सीख कर, कुछ नया करके या अनायास ही हम प्रसन्‍न रह सकते हैं। प्रसन्‍न रहने के लिए क्‍या किया जाना चाहिए, यह जानते हुए भी कई बार हमारा ध्‍यान उन क्रियाओं / अभ्‍यासों को करने में नहीं जा पाता । कितना अच्‍छा हो कि कोई हमें याद दिलाए कि हम क्‍या करें ? कितना किया, कैसा महसूस किया ?

इसमें मदद के लिए राज्‍य आनंद संस्‍थान ने आनंद कैलेण्‍डर को विकसित किया है। इस कैलेण्‍डर के माध्‍यम से हम उन गतिविधियों को रेखांकित कर सकते हैं, जो हमें प्रसन्‍न रहने में मदद करती हैं। दरअसल यह कैलेण्‍डर इस सोच के साथ तैयार किया गया है कि हम प्रसन्‍न रहने के लिए पर्याप्‍त अभ्‍यास करें ।

आपके अभ्‍यास के लिए आनंद कैलेण्‍डर में 9 विषय तथा उनसे जुड़ी कुछ गतिविधियां उदाहरण के लिए दी गई हैं । इस आनंद कैलेण्‍डर में यह बताने का प्रयास किया है कि ऐसा अभ्‍यास कैसे किया जाए।

  1. कृतज्ञता :
    जरा विचार करें कि आप जो हैं, आपके पास जो कुछ भी है, उसके पीछे कितने लोगों, प्रकृति का योगदान हैं। आपका ध्‍यान उस पर केन्द्रित रहता है जो आपके पास नहीं है। इससे आप निराश होते हैं। कभी ध्‍यान से सोचा आपके पास कितना कुछ है गंभीरता से सोचेंगे तो आपका ह्दय कृतज्ञता से भर जाएगा ।
  2. खेल :
    शारीरिक एवं मानसिक स्‍तर पर स्‍वस्‍थ जीवन के लिए खेलना अनिवार्य है। जीतने के लिए उतरना परन्‍तु हार को स्‍वीकार करने का गुण खेलों से ही सीखा जाता है। खेल जीवन में संतुलन लाते है।
  3. अल्‍पविराम :
    रोज की भाग-दौड़ शा‍रीरिक कम तथा मानसिक ज्‍यादा है। बाहर से ज्‍यादा भगदड़ आपके अंदर है। विचारों, चिंताओं, काल्‍पनिक डर, ईर्ष्‍या आदि की भीड़ लगी है। विश्राम नहीं करेंगे तो गिरना स्‍वाभाविक है। इस भागमभाग से अल्‍पविराम लेकर स्‍वयं से संवाद स्‍थापित करें ।
  4. मदद :
    वृक्ष फल और छाया देता है, फूल खुशबू, सूर्य रोशनी, समुद्र वर्षा । ‘’देना’’ उनकी प्रकृति है। यह उनका स्‍वभाव है। आपका स्‍वभाव क्‍या है ? आप क्‍या दे सकते हैं ?
  5. सीखने :
    सीखना सतत चलने वाली प्रक्रिया है। सीखने की उत्‍सुकता जीवन को गतिमान रखती है। आत्‍मसम्‍मान के भाव को मजबूत करती है।
  6. संबंधों :
    क्‍या संबंध आपकी जरूरतों- भौतिक, भावनात्‍मक, आर्थिक, सामाजिक-को पूरा करने के साधन है ? अपेक्षाएं पूरी नहीं तो संबंध समाप्‍त ? लोग भूल जाएंगे आपने क्‍या कहा, क्‍या किया परंतु आपने उन्‍हें क्‍या महसूस करवाया वह कभी नहीं भूलेंगे ।
  7. स्‍वीकार्यता :
    जीवन में जो परिवर्तन आप चाहते हैं उसके लिए पूरा प्रयास करें, अर्थात् हर परिस्थिति में जो श्रेष्‍ठतम संभव है उसे करें । इसमें निष्क्रियता का कोई स्‍थान नहीं है। परंतु जिसे बदल न सके, उसे स्‍वीकार करना भी सीखना होगा ।
  8. लक्ष्‍यों :
    यह एक आम धारणा है कि प्रतिस्‍पर्धा से ही श्रेष्‍ठ परिणाम मिलते हैं। क्‍या यह भ्रम है? क्‍या किसी व्‍यक्ति से आगे निकलने की इच्‍छा आपको उस व्‍यक्ति की क्षमता तक सीमित नहीं कर देती ? बेहतर होगा कि आप अपने खुद के लक्ष्‍य निर्धारित करें और पार जाने के लिए वह सब करें, जो संभव है।
  9. जागरूकता :
    जाने-अनजाने, चाहे-अनचाहे जीवन में आप विकल्‍प चुनते हैं । जागरूकता के आभाव का अर्थ है विकल्‍पों का चयन स्‍वचलित ढंग से करना । जैसे आदतन नशा। जागरूकता का अर्थ शारीरिक या मानसिक सतर्कता नहीं, वरन् अनुभव करना है कि ‘’मैं विकल्‍प चुन रहा हॅू’’। फिर विकल्‍प चुनने के जो परिणाम हों उनके लिए स्‍वयं को उत्‍तरदायी मानना ।
  10. संगम :
    इस कैलेण्‍डर में आपने 9 विषयों पर विचार किया । उनसे संबंधित गतिविधियों को करने का प्रयास किया । ये विषय आनंद प्राप्‍त करने के उपकरण हैं। परंतु जीवन घटकों में नहीं होता । उसकी संपूर्णता के लिए इन सभी विषयों को जीवन में उतारना होगा । आनंद की इन नौ धाराओं के संगम के लिए निरंतर प्रयास करना भी आवश्‍यक है। इसके लिए आप इन विषयों से जुड़ी गतिविधियों का बार-बार अभ्‍यास करें ।